What is Electoral Bond in Hindi: आज के आर्टिकल के अंतर्गत हम आपको इलेक्टोरल बॉन्ड क्या है के बारे में बताने वाले हैं लोकसभा चुनाव 2024 से पहले सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक बड़े फैसले में इलेक्टोरल बॉन्ड को अवैध और संवैधानिक बढ़कर रोक दी है| भारत के मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेच ने पिछले वर्ष 2 नवंबर को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था तो चलिए आगे बढ़ते हैं और जानते हैं इलेक्टोरल बॉन्ड क्या है (What is Electoral Bond in Hindi) के बारे में|
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क्या होता है इलेक्टोरल बॉन्ड|What is Electoral Bond in Hindi
चुनावी बांड एक प्रकार का मनी इंस्ट्रूमेंट होता है जो एक वाहक बांड के रूप में कार्य करता है जिन्हें भारत में व्यक्तियों या कंपनियों द्वारा खरीदा जाता है इसके नाम के अनुरूप यह बांड विशेष रूप से राजनीतिक दलों को धन के योगदान के लिए जारी किए जाते हैं इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक वित्तीय माध्यम माना जाता है|
इस बांड की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि बैंक से इसे खरीदने वाले का नाम बांड पर नहीं होता है इसे आप यह कह सकते हैं|कि कोई भी व्यक्ति गुमनाम तरीके से अपनी पसंद की पार्टी को फंडिंग कर सकता था इन बांड को कोई भी खरीद सकता है|
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चुनावी बॉन्ड की शुरुआत कब हुई?
चुनावी बॉन्ड को फाइनेंशियल वित्तीय बिल 2017 के साथ पेश किया गया था 29 जनवरी 2018 को नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने चुनावी बांड योजना 2018 को अधिसूचित किया था उसी दिन से इसकी शुरुआत हुई|
कैसे काम करते हैं चुनावी बांड?
इलेक्टोरल बॉन्ड को इस्तेमाल करना बहुत आसान है यह बॉन्ड ₹1000 के मल्टीपल में पेश किए जाते हैं जैसे की 1,000 ₹10,000, ₹100,000 और एक करोड रुपए की रेंज में हो सकते हैं यह आपको एसबीआई की कुछ शाखों पर मिल जाते हैं कोई भी दाता जिनका केवाईसी कंप्लीमेंट अकाउंट हो इस प्रकार के बॉन्ड को वह खरीद सकते हैं और बाद में इन्हें किसी भी राजनीतिक पार्टी को डोनेट कर सकते हैं|
इसके बाद रिसीवर इस केस में कन्वर्ट कर सकता है इस केस करने के लिए पार्टी के वेरीफाइड अकाउंट का इस्तेमाल किया जाता है इलेक्टोरल बॉन्ड भी केवल 15 दिनों के लिए वैलिड रहते हैं|
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इलेक्टोरल बॉन्ड पर क्यों हो रहा था विवाद?
इलेक्टोरल बॉन्ड पर कांग्रेस नेता जय ठाकुर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्मर्स समेत चार लोगों ने याचिकाएं दाखिल की याचिका कर्ताओं का कहना था कि इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से गुपचुप फंडिंग में पारदर्शिता को प्रभावित करती है|
यह सूचना के अधिकार का भी उल्लंघन करती है उनका कहना था कि इसमें सेल कंपनियों की तरफ से भी दान देने की अनुमति दी गई है| इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुनवाई पिछले वर्ष 31 अक्टूबर को शुरू हुई थी सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की बेंच में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल है|
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सूचना के अधिकार से जुड़ा सवाल
इलेक्टोरल बॉन्ड लाते समय कहां गया था कि इसका उद्देश्य राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले चंदे में काले धन के लेनदेन को खत्म करना है| अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने इसका समर्थन करते हुए सुप्रीम कोर्ट से कहा भी था कि यह स्कीम राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले छंदों में वाइट मनी के इस्तेमाल को बढ़ावा देती है|
हालांकि इसके खिलाफ आवाज उठाने वालों का कहना है कि इसके उलट और बंद के माध्यम से चंदा देने वालों का नाम गोपनीय ही रखा गया| इस पर अटॉर्नी जनरल ने विशेष अदालत के सामने तर्क दिया था कि नागरिकों को उचित प्रतिबंधों के अधीन हुए बिना कुछ भी और सब कुछ जानने का सामान्य अधिकार नहीं हो सकता है|
जो बॉन्ड जारी हो चुके हैं उनका क्या होगा?
सुप्रीम कोर्ट ने 2019 के अंतिम आदेश के बाद से खरीदे गए इलेक्टोरल बॉन्ड का विवरण सार्वजनिक करने का निर्देश दिया है स्टेट बैंक को सारी जानकारी निर्वाचन आयोग को देने के निर्देश दिए गए हैं|
इसमें कहा गया की जानकारी में यह भी शामिल होना चाहिए कि किस तारीख को यह बंद बनाया गया और इसकी राशि कितनी थी पूरा विवरण 6 मार्च तक उपलब्ध कराना होगा और निर्वाचन आयोग को 13 मार्च तक अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर इसे प्रकाशित करना होगा|
FAQ’s
बॉन्ड जारी करने वाला यानी जो उधर उठा रहा है, वह ब्याज सहित मूलधन चुकाने का वचन देता है|
बॉन्ड दो प्रकार के होते हैं सुरक्षित बॉन्ड असुरक्षित बॉन्ड|